भारतीय वैज्ञानिकों का कमाल, मर्दों को एक इंजेक्‍शन देने से 13 सालों तक गर्भनिरोध

भारतीय वैज्ञानिकों का कमाल, मर्दों को एक इंजेक्‍शन देने से 13 सालों तक गर्भनिरोध

सेहतराग टीम

भारत में लगातार जनसंख्‍या विस्‍फोट की स्थिति बनती जा रही है। पिछले तीन दशकों में देश की आबादी 60 फीसदी बढ़ चुकी है। आबादी बढ़ने का असर देश की सामान्‍य सुविधाओं पर पड़ने के साथ-साथ देश की सरकारों पर भी पड़ता है। जो योजनाएं एक खास आबादी को सोचकर बनाई जाती हैं, कुछ ही सालों में आबादी बढ़ जाने से वो योजना बेकार साबित होने लगती है।

भारतीय समाज की मुश्किल ये है कि यहां परंपरा से ही गर्भ निरोध को लेकर एक अजीब तरह का प्रतिरोध रहा है। घर के मर्द मर्दानगी गंवाने के भय से गर्भ निरोधक ऑपरेशन (नसबंदी) से दूर भागते हैं जबकि महिलाओं को घर की बड़ी बुजुर्ग महिलाएं ये ऑपरेशन करवाने से हतोत्‍साहित करती हैं। ऐसे में गर्भ निरोध के सामान्‍य तरीके जैसे कि खाने वाली गोलियां अथवा कांडोम जैसे उपायों का ही सहारा बचता है मगर खास बात ये है कि ये उपाय कई बार लापरवाही के कारण कारगर नहीं होते और अपने उद्देश्‍य को पूरा नहीं कर पाते।

ऐसे में भारतीय वैज्ञानिकों ने गर्भनिरोध का एक नायाब उपाय निकाला है जो मर्दों के लिए है। वैज्ञानिकों ने सिर्फ एक इंजेक्‍शन के जरिये कई सालों तक गर्भनिरोध का तरीका तलाश लिया है। इसका क्लिनिकल ट्रायल पूरा हो चुका है। इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च यानी आईसीएमआर की अगुवाई में यह ट्रायल पूरा कर रिपोर्ट स्वास्थ्य मंत्रालय को सौंप दी गई है और बहुत जल्द इस इंजेक्शन को इस्तेमाल के लिए हरी झंडी मिलने वाली है।

आईसीएमआर के वैज्ञानिक डॉक्टर आर.एस. शर्मा ने बताया कि यह रिवर्सिबल इनबिशन ऑफ स्पर्म अंडर गाइडेंस (RISUG) है, जो एक तरह का गर्भनिरोधक इंजेक्शन है। अब तक पुरुषों में गर्भनिरोधक के लिए सर्जरी की जाती रही है, लेकिन अब सर्जरी की जरूरत नहीं होगी। अब एक इंजेक्शन पुरुषों के लिए गर्भनिरोधक का काम करेगा। खास बात यह है कि इस इंजेक्शन की सफलता की दर 95 पर्सेंट से भी ऊपर है और एक बार इंजेक्शन लगाने के बाद कम से कम 13 साल तक यह काम करता है। डॉक्टर शर्मा ने कहा कि 13 साल तक का रेकॉर्ड उनके पास है और उन्‍हें उम्मीद है कि यह इंजेक्शन इससे भी ज्यादा समय तक काम कर सकता है। 

डॉक्टर शर्मा ने बताया कि आईआईटी खड़गपुर के वैज्ञानिक डॉक्टर एस.के. गुहा ने इस इंजेक्शन में इस्तेमाल होने वाली दवा की खोज की थी। यह एक तरह का सिंथेटिक पॉलिमर है। सर्जरी में जिन दो नसों को काट कर इसका इलाज किया जाता था, इस प्रोसीजर में उन्‍हीं दोनों नसों में यह इंजेक्शन दिया जाता है, जिनमें स्पर्म ट्रैवल करता है। इसलिए इस प्रोसीजर में दोनों नसों में एक-एक इंजेक्शन दिया जाता है। डॉक्टर ने कहा कि 60 एमएल का एक डोज होगा। 

उन्होंने कहा कि इंजेक्शन के बाद निगेटिव चार्ज होने लगता है और स्पर्म टूट जाता है, जिससे फर्टिलाइजेशन यानी गर्भ नहीं ठहरता। डॉक्टर ने कहा कि पहले चूहे, फिर खरगोश और अन्य जानवारों पर इसका ट्रायल पूरा होने के बाद इंसानों पर इसका क्लिनिकल ट्रायल किया गया। 303 लोगों पर इसका क्लिनिकल ट्रायल फेज वन और फेज-टू पूरा हो चुका है। इसके टॉक्सिसिटी पर खास ध्यान रखा गया है, जिसमें जीनोटॉक्सिसिटी और नेफ्रोटॉक्सिसिटी वगैरह क्लियर हैं। 97.3 पर्सेंट तक दवा को ऐक्टिव पाया गया और 99.2 पर्सेंट तक प्रेग्नेंसी रोक पाने में कारगर साबित हुआ। 

डॉक्टर शर्मा ने कहा कि हमने यह रिपोर्ट स्वास्थ्य मंत्रालय और ड्रग्स कंट्रोलर ऑफ इंडिया को सौंप दी है। उन्होंने कहा कि अब हम इस पर एक स्टेप और आगे काम करने की तैयारी कर रहे हैं, जिसमें यह कोशिश है कि अगर किसी को इंजेक्शन लेने के बाद फिर से स्पर्म को ऐक्टिव बनाना है, तो क्या वह वापस लाया जा सकता है या नहीं। इस पर काम करना शुरू कर दिया गया है।

(नवभारतटाइम्‍स डॉट कॉम से साभार)

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